
यह कहानी एक आदिवासी गांव की है जहां पढ़ाई लिखाई के बारे में सोचना , दिल्ली में नारियल के पेड़ मांगने जैसा है। लेकिन कुछ दिनों में यहां जो कुछ हुआ वह गांव के लोगों को एक स्कूल के बारे मे सोचने पर मजबूर कर दिया। गांव के कुछ लड़के लड़कियां जिस तरह से बड़े लोगों को आइडिया और मदद दे रहे थे वह लोगों को ऐसा एहसास दिला रहा था कि यह बच्चे उस उफनती नदी की तरह हैं जो अगर समय से एक सही दिशा में नहीं रखे गए तो गांव, समाज और देश का बहुत नुकसान हो सकता है। ये सभी बच्चे करीब सात आठ साल के होंगे। एक लड़की अपने चाचा जी को यह बता रही थी कि उनकी उनकी तबियत छोटी सी सावधानी लेने से ठीक रहेगी, जैसे पानी उबाल कर पिएं, आदि, और थोड़ी सावधानी लेने से इस समस्या से कैसे बचा जा सकता है। इनमें से एक बच्चा एक दिन अपने पिता को यह बता रहा था कि वह कैसे अपना अनाज इन लोगों में बराबर बांट सकते हैं क्योंकि उसने पिता को इस बात से चिंतित देखा कि वह इन सबके साथ कैसे न्याय कर सकते हैं । वहीं पर एक लड़का अपने दादी को बता रहा था कि धुएं में आपको नहीं जाना चाहिए क्यूंकि धुवां हवा में अपनी जगह बनाकर हवा को कम कर देता है, जो आपको सांस लेने में तकलीफ करेगा। इन घटनावों से ऐसा लगने लगा कि सदियों से इस गांव में जो अंधकार था वह अब धूमिल पड़ता दिखाई देता है और आकाश में सफेदी दिखने लगी है। सवेरा दूर नहीं है अब, ऐसा सबको यकिन होने लगा था। जल्द ही गांव वालों ने सरकारी अफसरों से बात चीत करके, एक स्कूल खोलने का प्रोजेक्ट शुरू कर दिया। कुछ दिनों में ही लोगों ने एक बुद्धिमान एवं सरल टीचर भी खोज लिया जो गांव में ही रहेंगे। टीचर ने लोगों का उत्साह देखकर अपने आप को इन बच्चों को समर्पित करने की ठान ली और उनके सपने को अपना समझकर जीने की कसम ले ली। देखते देखते, गांव में स्कूल आ गया, टीचर जी ने कमान संभाल ली। टीचर ने लोगों को कहा कि मैं इन्हें विश्वविद्यालय में दाखिला लेने तक कि ज़िम्मेदारी लेता हूं और,इन्हें किसी दूसरे बड़े शहरों के बच्चों के बराबर बना दूंगा। कुछ वर्षों बाद, पहले बैच के १२ बच्चों में से ८ इंजीनियर, ०२ वकील और ०२ डाक्टर बने और देश और विदेश में ये अपना नाम करने लगे।
वह सभी अपने माता पिता को अपने शहर लाए और माता पिता उनके शहर और उनकी जिंदगी देखते नहीं थकते थे। उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे और टीचर के लिए भगवान का दर्ज़ा।
गांव के लोगों ने टीचर जी की मृत्यु के पश्चात उनकी एक मंदिर बनवाई और वर्ष में एकबार सभी विद्यार्थी और गांव के लोग उनके मंदिर में एक "आशीर्वाद दिवस" मनाते थे। इस गांव का पता अब कारपोरेट जगत में मशहूर है, और हर साल इस गांव के बच्चे विभिन्न कंपनियों में काम करने के लिए आते हैं।
No comments:
Post a Comment