वल्लभ राव एंड एसोसिएट्स कंपनी अपने ग्राहकों को कानूनी सलाह एवं मदद देती है यह कंपनी लगभग 70 साल पुरानी है लेकिन समय के साथ इसके मालिक इसमें तकनीकी और तौर तरीके में बदलाव करते रहे हैं, जिसके कारण आज भी उनके ग्राहकों की संख्या दिन पर दिन बढ़ रही है और आज देश के अलावा विदेशों में भी लगभग 50 देशों में इनके ग्राहक मौजूद हैं। ग्राहकों को अच्छी सेवा देने के के लिए इनके ऑफिस में कुछ खास सुविधाएं भी हैं जो ग्राहकों को सुकून देने वाली है जैसे रुकने के लिए गेस्ट हाउस, कुछ घंटों के इंतजार के लिए एक अच्छा प्रतिक्षालय जिसमें चाय नाश्ते की भी व्यवस्था है , कहीं आना जाना हो तो ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था भी कंपनी अपने ग्राहकों को उपलब्ध कराती है, शहर में इस तरह की सुविधा मिलना एक दुर्लभ चीज है और बहुत कम उद्योगपति इस तरफ ध्यान देते हैं।
ग्राहकों की अच्छी संख्या होने का कारण इस ऑफिस का पता भी एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यह ऑफिस हाई कोर्ट, विश्वविद्यालय, सेक्रेटेरिएट, रेलवे स्टेशन और म्युनिसिपल कारपोरेशन से दो से 3 किलोमीटर के दूरी पर है इस कारण लोगों को इस ऑफिस में आना सुविधाजनक लगता है और इसलिए पुराना होने के बावजूद यह स्थान आज भी ग्राहकों से भरा रहता है।
इस कार्यालय में लगभग 200 कर्मचारी काम करते हैं और इनमें से लगभग 15 से 20 ही लोग ऐसे हैं जिन्होंने 20 साल से ऊपर की सेवा लगातार इस कंपनी को दे रहे हैं इसके अलावा लोग दो-तीन साल से 5 साल तक काम करके दूसरी कंपनी में चले जाते हैं इन 15 से 20 लोगों में ही शास्त्री और अंसारी भी हैं इन 15 से 20 लोगों की पदोन्नति पिछले पांच 7 वर्षों से लगभग बंद हो गई है और यह अपने आप को नारियल के पेड़ की तरह देखते हैं जो इतना स्वादिष्ट, स्वास्थ्य वर्धक और पूजनीय फल प्रदान करने के बावजूद बढ़ता हुआ दिखाई नहीं देता है। यह सभी बहुत ईमानदार, अनुभवी एवं मेहनत करने वाले और अपने काम को जानने वाले लोग हैं यह अब उम्र के उस जगह पर पहुंच गए हैं जहां अब एक नई कंपनी में काम शुरू करना इनके लिए एक बहुत मुश्किल काम लगता है, ये बात वह किसी से कह तो नहीं सकते लेकिन उनके मन में ऐसी ही धारणा है उन्हें यह नहीं पता की कंपनी के मालिक को किस कारण से हमें पदोन्नति देने में हिचकिचाहट होती है , यह चाहते हैं की कंपनी इन्हें कहे कि इनसे क्या उम्मीद करती है लेकिन ऐसा कुछ भी उनके साथ नहीं हुआ है और वह अपने काम में व्यस्त रहते हैं दूसरी तरफ पवन का पद और सैलरी नाखून की तरह बढ़ रहा है और हमारी तनख्वाह उससे बहुत दूर खड़ी दिखाई दे रही है। यह चिंता अब इन लोगों में बढ़ती जा रही है कि आगे आने वाले वर्षों में उनके साथ क्या होगा।
आज पदोन्नति का दिन फिर से आ गया और शास्त्री एवं अंसारी को पदोन्नति तो नहीं लेकिन थोड़े पैसों का इजाफा हुआ, दूसरी तरफ नौजवान पवन की पदोन्नति 3 साल के बाद फिर से हुई और तनख्वाह तो पिछले सात-आठ सालों में तिगुनी से भी ज्यादा हो गई है शास्त्री और अंसारी आज बहुत दुखी हैं और और इस बात को समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर पवन की तरक्की कैसे हो रही है और हम से कहां चूक हो रही है ? शास्त्री और अंसारी दोनों अपने एक सीनियर तगड़े का विचार लेना चाहते हैं, ऐसा सोच कर दोनों तगड़े के पास पहुंच गए। तगड़े को उन्होंने बताया की आप हम लोगों को इतने वर्षों से जानते हैं हमारे काम करने के तरीके और हमारे अनुभव का आपको अच्छा ज्ञान है तो हम यहां तरक्की क्यों नहीं कर पा रहे हैं और कल के नौजवान हम से आगे कैसे निकल जा रहे हैं हम लोगों से कहां चूक हो जा रही है अगर आप अपने अनुभव से हमें कुछ रास्ता बताएं तो हम उस पर अभी से अमल करना शुरू कर देंगे।
तगड़े ने उनकी बात सुनी , यह तीनों एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह जानते हैं और काफी वर्षों से साथ में काम कर रहे हैं। तगड़े भी इसके भुक्तभोगी है और अब उसने अपने आपको मानसिक रूप से तैयार कर लिया है की हमारा रास्ता अलग है और पवन का रास्ता अलग है उसने शास्त्री और अंसारी को कहा कि चाय मंगाते हैं और हम जो इसमें समझ पा रहे हैं वह हम तुमको बताते हैं। थोड़ी देर में सबके लिए चाय आ गई और तगड़े ने अपनी बात कहनी शुरू की -
उसने कहा कि जो तुम सोच रहे हो वह मैं भी वह कई बार सोच चुका हूं और हमारी समझ यह कहती है कि हम लोग अनुभवी भी हैं, मेहनती भी है, काम को भी जानते हैं, लेकिन एक जो चूक हम लोग कर रहे हैं वह यह कि हम अक्सर अपनी सोच का टांग अड़ाते हैं और वह उनके मुंह पर कह देते हैं, पूरी ईमानदारी के साथ, और फिर हम गर्व महसूस करते हैं कि हमने एक बहुत अच्छा काम किया है और यह बिल्कुल भूल जाते हैं कि उस विषय पर यह हमारा अपना व्यक्तिगत विचार है जो हमारे सीमित अनुभव और शिक्षा के आधार पर है, दूसरी बात यह है कि हम इससे बिल्कुल अनभिज्ञ होते हैं कि क्या हमने इस बात में जो अपनी टांग अड़ाई, उसकी कोई जरूरत थी ? हम यह वर्षों से पूरे स्वाभिमान के साथ करते आ रहे हैं अब बहुत वक्त बीत चुका है और जैसे नारियल के वृक्ष में शाखाएं नहीं निकलती हैं ,हम सब वैसे ही हो गए हैं चिकने सपाट और सीधे।
तगड़े अपनी बात कहते जा रहा था, उसने आगे कहा कि जिस तरह पानी में रंग डालो और पानी उसे अपने में शामिल कर लेता है और सारा पानी रंगीन हो जाता है, पानी मैं शक्कर डालो तो पूरा पानी मीठा हो जाता है, पानी का दूसरों को अपनाने का जो यह गुण है, वही उसे जीवनदायिनी बनाता है। हम दूसरों को अपनाने के बजाए बराबर अपनी घिसी पीटी और बिना पूछे अपनी सलाह देते रहे, जैसे हम दुनिया के सबसे सफल और काबिल इंसान हैं।
हमसे यही चूक हो गई और हमारी बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है, जिसने आज तक हमें यह नहीं बताया कि हमें अभी बहुत सीखना है और दूसरों के साथ ही आगे बढ़ना है। यह तभी ही सकता है जब हम दूसरों को अपनी जिंदगी में जगह दें। अगर पानी रंग को जगह नहीं देगा तो क्या पानी कभी रंगीन हो सकता था क्या? हम इस कला में बुरी तरह से पीट गए।
पवन पानी की तरह सबको साथ लेकर, उन्हे खुश रहकर काम करता है। ऐसे में कौन नहीं चाहेगा कि वो उनके साथ हो। कंपनी का मालिक कुछ नियमों से बंधा है नहीं तो अबतक पवन उसके बगल में बैठा होता। हम तो फक्र से कहते हैं कि पवन जैसा ही व्यक्ति एक व्यवसाय वाले को चाहिए। व्यवसाय का मतलब ही है, साथ साथ रहना।
तगड़े बात कहते कहते रो पड़ा , शास्त्री और अंसारी उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, हम समझ गए।
आज तक हमलोग लोहे की तरह पानी में पड़े हैं अपनी अकड़ में। आज पवन की रफ्तार भरी तरक्की ने हमारी सोच को झकझोर दिया। हम सीखे तो बहुत लेकिन बड़ी देर से।
लेकिन हमे निराश नहीं होना चाहिए, हम कोई गलत काम नहीं करते। केवल अपने काम करने के तरीके में थोड़े नगीने जड़ने हैं, पानी के गुण वाला। सूरज को भी तो लंबी रात काटनी होती है एक नई सुबह के पहले...
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