Thursday, March 3, 2022

ई ऑफिस है साहेब !

 

प्रवेश एक कैफे और राइटर्स बार चलाते हैं और उनका बिज़नेस अच्छा चल रहा है। लेकिन प्रवेश ने शौक़ से यह काम नहीं किया है, इसके पीछे उनके कॉरपोरेट कैरियर में हुए एक हादसे का बड़ा हाथ है।


कुछ इस तरह से हुआ सबकुछ...प्रवेश और विद्या एक खिलौने की कंपनी में काम करते हैं इन्हें यहां काम करते हुए लगभग 4 साल हो गए हैं यह कंपनी कई देशों में अपने खिलौनों का निर्यात करता है और काफी अच्छा इसका साल दर साल मुनाफा हो रहा है।


विद्या कंपनी के एचआर (HR) में काम करती है और प्रवेश मैन्युफैक्चरिंग में काम करता है उनकी अकसर मुलाकात और बातचीत होती रहती है। प्रवेश को अपने लोगों के ट्रेनिंग के लिए ,प्रमोशन के लिए, छुट्टी आदि के लिए अक्सर विद्या के साथ बैठना पड़ता था। विद्या अपना पूरा सहयोग देती थी और जिसके कारण इनका कामकाज बहुत सुचारू रूप से चल रहा था। पिछले साल मई के महीने में पवन के ऊपर एक कर्मचारी नियुक्त किया गया जिसका नाम शशि भूषण था । शशि भूषण बहुत लंबे अनुभव के साथ इस कंपनी में ज्वाइन कर रहे थे, इसके पहले उन्होंने पेन बनाने की कंपनी, ऑफिस कुर्सी बनाने की कंपनी में काम किया था। पवन के रिपोर्टिंग मैनेजर विजय प्रकाश हैं और शशि भूषण के रिपोर्टिंग मैनेजर भी विजय हैं।


शुरुआत में प्रवेश और शशि के बीच में काफी अच्छा मेलजोल था और शशि के अनुभव के कारण प्रवेश उनसे काफी कुछ सीख रहा था। शशि का प्रशासनिक और कम्युनिकेशन के क्षेत्र में काफी अच्छा काम था। शशि के आने से प्रोडक्शन डिपार्टमेंट का कामकाज बहुत अच्छा और सुचारू रूप से चल रहा था। पिछले महीने से प्रवेश ने यह बात महसूस किया की शशि अपना काफी काम उसको दे देते थे और एक नियत समय पर उस काम को पूरा करने के लिए भी कहते थे। प्रवेश एक नौजवान और मेहनती कर्मचारी था इसलिए उसने इन जिम्मेदारियों को भी अपने ऊपर ले लिया और पूरी कोशिश करता था कि वह यह काम भी कर दे अपनी दूसरी जिम्मेदारियों के साथ समय के साथ साथ शशि का दिया हुआ काम बढ़ने लगा और  प्रवेश अक्सर ही ऑफिस से देर से निकलने लगा क्योंकि वह कोशिश करता था कि काम पूरा करके ही ऑफिस से निकले ताकि दूसरे दिन फिर से एक निर्धारित प्लान के अंतर्गत काम शुरू हो । रोज का रोज काम पूरा हो जाने से किसी भी तरह का मानसिक तनाव नहीं रहेगा प्रवेश ऐसी कोशिश करके रोज शशि के काम पूरा करने का कोशिश करता था।


शशि के काम को पूरा करते हुए कल तो उसे लगभग रात्रि के 1:00 बज गए रास्ते में जाते समय उसने सोचा की ऐसा तो रोज नहीं कर सकता है और कुछ ना कुछ इसका रास्ता निकालना पड़ेगा इसी सोच के दौरान उसे विद्या का ख्याल आया और उसने दूसरे दिन विद्या से मिलने का सोच लिया उसने सुबह-सुबह ही विद्या को फोन किया और उससे मिलने का समय मांग लिया। विद्या ने उसकी पूरी बात सुनी और कहा कि तुम ठीक कह रहे हो यह तो एक सीमा तक कोई भी कर्मचारी करता ही है लेकिन यह शशि को बताना पड़ेगा कि यह संभव नहीं है, इसके लिए अपनी परेशानी को एक बार पहले शशि को बता दो और फिर कुछ दिन इंतजार करो, अगर उनके काम में कोई सुधार नहीं दिखता है तो तुम अपनी रिपोर्टिंग बॉस विजय को सारी बात बताओ। प्रवेश को यह सलाह बहुत अच्छी लगी और उसी दिन लंच ब्रेक के बाद उसने शशि को अपने काम के बारे में बताया और कहा कि मैं अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद भी आपके काम को कर रहा हूं जो विजय को मालूम नहीं है , और ऐसा करना मेरे लिए उचित नहीं होते हुए भी मैंने आपके अनुभव और सीनियर होने का मान रखते हुए करता रहा लेकिन आपको शायद पता नहीं कि मैं रोज ऑफिस से देर रात में निकलता हूं ताकि विजय ने जो मुझे काम दिया है वह अधूरा नहीं रहना चाहिए, इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूं की आप जब भी कोई काम मुझे देना चाहते हैं तो आप मुझसे पूछ लें और अगर मेरे पास काम कम हुआ तो मैं आपका काम अवश्य कर दूंगा। शशि ने उसकी पूरी बात सुनी और कहा कि मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा कि तुम्हें काम करने में परेशानी हो रही है, हम तो यह सोच कर तुम्हें काम दे रहे थे कि काम करके ही तुम अब और बेहतर हो सकते हो और समय के साथ-साथ बड़े पद पर भी जल्दी ही पहुंच सकते हो ऐसा कह कर उन्होंने कहा कि ठीक है हम इस बात का ध्यान रखेंगे। प्रवेश बहुत खुश हुआ और अपना काम करने लगा शाम में फिर शशि ने उसे बुलाया और कुछ काम समझा कर घर चला गया। प्रवेश ने जो बात उनको कही थी कि काम देने के पहले वह एक बार उससे पूछ ले, ऐसा उन्होंने नहीं किया।


प्रवेश ने सोचा कि शायद आने वाले दिनों में वह इस बात का ध्यान रखेंगे, और यह समस्या समाप्त हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ यह सिलसिला चलता रहा और शशि उसी तरह से काम देता रहा । प्रवेश ने इस बात की जानकारी विद्या को दी और उससे पूछा कि अब क्या करना चाहिए, जिससे ऑफिस की मर्यादा भी बनी रहे और अपना काम हो जाए। विद्या ने कहा कि अब तुम विजय को सारी बात बताओ और यह विजय की जिम्मेदारी है कि वह इन चीजों को सामान्य कर दें यही एक तरीका मुझे समझ में आ रहा है। प्रवेश ने विद्या को धन्यवाद दिया और विजय से मिलने का मन बना लिया। आमतौर पर पवन की विजय से मुलाकात काम में जब कभी कोई दिक्कत आती थी तभी होती थी क्योंकि प्रवेश एक बहुत कुशल कर्मचारी था और विजय के नीचे एक बहुत बड़ी टीम थी। विजय प्रवेश से बहुत खुश भी रहते थे, उसके काम और स्वभाव के कारण । इसलिए प्रवेश से जब विजय की मुलाकात हुई तो विजय तो पहले सोचे कि कुछ विशेष बात होगी काम को लेकर तो उन्होंने तुरंत प्रवेश को बोला क्या बात है आज कैसे आए हो।

प्रवेश ने उन्हें शशि के बारे में सारी बात बताई और कहा कि विद्या के बताए हुए प्लान के अनुसार काम करने पर भी शशि अपने तरीके पर कायम है और यह हमारे काम को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है विजय ने उसकी बात सुनी और बहुत सामान्य तरीके से कहा कि इसमें परेशान होने की कोई बात नहीं है, शशि भी बहुत अनुभवी कर्मचारी है और हमें इसमें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है, हम शशि से बात करेंगे और जल्दी ही चीजें सामान्य हो जाएंगे चिंता मत करो। प्रवेश को क्या पता की वह अब एक साजिश का केंद्र है और जल्दी ही उसकी विदाई होने वाली है। 


ये जीवन के कुछ ऐसे पल होते हैं जब आपको अपने सीमित और बौना होने का एहसास होता है। आपको कुछ पता नहीं होता है की आप के चारो तरफ एक दूसरी दुनिया बन रही है जिसमे आप कैद हो जायेंगे और अगर किस्मत ने साथ नहीं दिया तो बर्बाद भी हो जायेंगे।


प्रवेश विजय से मिलकर और परेशान हो गया, उसे विजय के बातचीत में किसी भी तरह की चिंता नजर नहीं आई । प्रवेश फिर से विद्या से मिला और उसको सारी बात बताई। विद्या ने कहा कि अभी इस पर बहुत सोचना ठीक नहीं है, विजय को भी थोड़ा समय दो लगभग 1 महीने और बीत गए लेकिन कुछ भी सुधार नहीं हुआ। प्रवेश को यह शक होने लगा कि शशि के व्यवहार में विजय का भी हाथ है , अगर ऐसा नहीं है तो विजय के एक इशारे पर शशि का व्यवहार बदल जाता। विजय के इस व्यवहार से उसे सबसे बड़ी चिंता इस बात की हो रही थी की कहीं ऐसा तो नहीं की कंपनी की उसमें रूचि कम हो गई है और उसकी नौकरी खतरे में है। उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी क्योंकि विजय के बारे में जो उसकी सोच थी वह तो बिल्कुल गलत साबित हो गई और विजय और शशि एक ही शरीर के दो हाथ जैसे लग रहे थे और जब शरीर को बुखार हो तो दोनों ही हाथ में बुखार होगा तो पूरा तंत्र ही बुखार ग्रसित नजर आ रहा था । उसे अब यह नहीं समझ में आ रहा था की इस बात की जड़ कहां है ऐसी क्या बात हो गई।


प्रवेश ने विद्या को सारी बातें कही और उससे कहा की मुझे कोई षड्यंत्र लगता है, विजय के व्यवहार से मुझे साफ हो गया है की बात इतनी सीधी नहीं है। विद्या को भी अब धीरे धीरे शक हो गया था, अभी तक तो वह केवल प्रवेश से संपर्क में थी और जैसे दूसरे सभी कर्मचारियों से वह बात करती थी वैसे ही प्रवेश के साथ भी किया करती थी, लेकिन प्रवेश के विषय में उसे कुछ नई चीज नजर आ रही थी अब वह और भी उत्सुक हो गई थी यह जानने के लिए कि यह सब प्रवेश के साथ क्यों हो रहा है? यह सामान्य नहीं है और उसके अनुभव में ऐसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं था जहां विजय के स्वभाव का आदमी उस कंपनी में काम कर रहा हो। उसने प्रवेश को सांत्वना दी और कहा कि जल्दी बाजी मत करो, मैं तुम्हारे प्रोजेक्ट पर काम करूंगी और तुम्हारे जैसे व्यक्ति के साथ गलत न हो, इसका मैं पूरा कोशिश करूंगी।  मैं जल्दी ही तुम्हें इसके बारे में और जानकारी दूंगी और यह पता करने की कोशिश करूंगी कि ऐसा क्यों हो रहा है। प्रवेश को थोड़ी राहत हुई और फिर वह अपने काम पर चला गया।


विद्या के लिए एक नया अनुभव था यह। उसके मन में अब इस बात की बहुत उत्सुकता बढ़ गई की प्रवेश के साथ ऐसा क्यों हो रहा है इसका कारण कौन हो सकता है। इसका एक कारण यह भी था की विद्या सोच रही थी कि जो आज प्रवेश के साथ हो रहा है वह हमारे साथ भविष्य में नहीं होगा यह कैसे मान लें, क्योंकि तंत्र तो वही है और इसी बात की चिंता उसे इस पूरी कहानी में उत्सुकता दिला रही थी। उसने अब थोड़ा समय उसके  सीनियर्स की बातचीत पर देना शुरू किया, वह कुछ काम लेकर देर शाम में भी बैठने लगी , ऑफिस जल्दी आने लगी और अपना काम जल्दी से पूरा करके इस बात का ढोंग करती थी कि वह काम कर रही है मगर उसका सारा ध्यान आसपास की गतिविधियों पर ज्यादा था । अब वह कैंटीन में जो बात होती है, उसके विभाग के लोगों के बीच में चाय के समय जो बात होती है, उस पर समय देना शुरू किया। उसके जो विभाग के सीनियर थे उनमें एक साहू थे और साहू के ऊपर पीयूष, पीयूष सबसे ऊपर थे। एक दिन जब ऑफिस में बहुत कम लोग थे और पीयूष और साहू साथ में बैठे हुए थे तो थोड़ी देर के बाद विजय भी वहां आ गए। इन तीनों को एक साथ विद्या ने बहुत कम देखा था। वह थोड़ी देर बैठे और फिर अपनी अपनी जगह पर चले गए अब उसकी उत्सुकता यह जानने में थी अभी विजय का इन लोगों के पास बैठने का क्या कारण होता है। और क्या विषय होता है क्योंकि इस वक्त इन तीनों का यहां बैठना उसे कभी पता नहीं था।

 एक दिन ऐसे ही वह शाम तक ऑफिस में रुकी थी और लगभग सभी लोग जा चुके थे। वह भी जाने के लिए तैयार हुई और कैंटीन, जी बहुत छोटा था वहां से होते हुए निकल रही थी। कैंटीन में कोई भी बातचीत अगर हो रही हो और आसपास शांति हो तो सुनी जा सकती थी। जैसे ही विद्या शॉल लपेटे हुए उस दीवार से निकलने लगी उसे पीयूष की बात सुनाई दी, जो विजय को कह रहा था कि तुम्हारे यहां नया लड़का दयाशंकर कब आ रहा है तो विजय ने कहा, एक हफ्ते का टाइम और दीजिए कोशिश कर रहा हूं। पीयूष ने कहा, काफी देर हो रही है बहुत दबाव है, अगले हफ्ते इसे पूरा करो । दयाशंकर जल्दी ही आ जाना चाहिए। विद्या तेजी से वहां से निकल गई उसके शरीर कांपने लगे , पसीने आने लगे और घबराई हुई पार्किंग से अपनी गाड़ी निकाली और किसी तरह घर पहुंच गई । उसने ऐसा पहले कभी अनुभव नहीं किया था। इस ऑफिस में उसका  अनुभव अब तक बहुत ही अच्छा और मित्रवत था। लोगों को जो भी बात कहनी हो वह आमने-सामने कर लेते थे, समझते थे, समझाते थे और एक रास्ता निकलता था और बहुत अच्छा वातावरण था। लेकिन आज की जो बात उसने सुनी उसे दयाशंकर और प्रवेश दोनों की तस्वीरें उसके दिमाग में घूमने लगी। यह दयाशंकर कौन है ? क्या पवन की कहानी का यह विलन है? यह सोचकर ही उसकी शरीर में बिजली जैसी कौंधी। उसने मन में ठान लिया की प्रवेश के साथ हमारे यहां होते हुए कुछ नहीं हो सकता है। प्रवेश के लिए हम कुछ भी करेंगे, हम लोग इंसान पहले हैं। जो चीज हमें खुश रहने के लिए चाहिए होती है उसे हम इतनी आसानी से नहीं गवा सकते, प्रवेश एक अच्छा नौजवान आदमी है और उसके लिए कुछ भी अच्छा करना यह हमारा पहला कर्तव्य है। उसने इसे सबसे पहेली प्रायरिटी का प्रोजेक्ट बनाया और यह ठान लिया की प्रवेश को इसकी जानकारी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह मसला हमारे ही विभाग में हो रहा है, और इसकी जड़ हमारे विभाग में ही है मुझे केवल सही जानकारी लेनी है और फिर एक निर्णय लेना है जो प्रवेश की जिंदगी को नुकसान ना पहुंचाते हुए उसे एक रास्ता दिखाएं।


विद्या का काम शुरू हो गया दयाशंकर कौन है, किस सिलसिले में उसका नाम पीयूष ले रहा है किस दर्जे का अनुभव है? किस पद के लिए उसे लेना है? अब वह अपने विभाग में जो बड़े लोग हैं उनके आसपास रहने लगी और  पीयूष के पर्सनल असिस्टेंट, जिनका नाम विनायक था जो पीयूष के लिए सब काम करते थे ,जो भी लेटर ड्राफ्ट करना हो आदि विनायक ही बनाते थे। पीयूष उनको शॉर्टहैंड में नोट दे देते थे और विनायक उसे तैयार कर देता था। विनायक के पास से पीयूष लेटर अपने तरफ से भेज देते थे इसका कारण यह था कि पीयूष की जिम्मेदारी बहुत बड़ी थी, और बहुत से ऐसे रोज के काम के लिए उनके पास समय नहीं था और इसके लिए कंपनी ने उनको यह सुविधा दी थी । विनायक छोटे से पार्टीशन के पीछे बैठते थे और पीयूष के साथ ही लगभग रहते थे।


विद्या ने सोचा कि अगर पीयूष पर नजर रखनी है तो पीयूष के पास पहुंचना तो बिल्कुल असंभव है इसलिए विनायक के आसपास होना ज्यादा अच्छा रहेगा। वह विनायक के पास अक्सर अपने काम से भी जाती रहती थी विनायक के बगल में ही उनके दूसरे मित्र भी काम करते थे, जिनके पास विद्या जाती रहती थी। ऐसे ही एक दिन विनायक अपनी जगह से किसी काम के लिए कहीं गए तो विद्या तुरंत किसी बहाने से उनके टेबल पर गई और उसने जो वहां देखा उसके होश उड़ गए।


विद्या ने वहां पर एक प्रिंट आउट, लैपटॉप के नीचे रखा हुआ देखा जिसमें यह लिखा हुआ था की प्रवेश को 1 महीने का समय दिया जाता है और इस बीच में वह अपनी दूसरी नौकरी की तलाश कर ले और यह लेटर पढ़कर विद्या को लगभग कहानी समझ में आने लगी की दयाशंकर एक विशेष व्यक्ति है जिसको लाना बहुत जरूरी है। उसके रास्ते में प्रवेश आ रहा है। वह फिर अपने स्थान पर चली गई और अब उसने सोचा कि अब जो भी होना है एक-दो दिन में ही हो जाएगा और शायद प्रवेश को भी इस तरह की एक चिट्ठी मिल जाएगी विजय के तरफ से। वह दूसरे दिन बिल्कुल सुबह ऑफिस के 2 घंटे पहले आने का निर्णय लिया और उसने देखा की विनायक पहले से ऑफिस आ चुका है उसने हाय हेलो किया और विनायक ने विद्या से पूछा, आज बहुत जल्दी ; विद्या ने हंसते हुए कहा ,हां मेरे मम्मी डैडी को ट्रेन में बैठाना था वह घर जा रहे हैं; तो मैने सोचा कि जब घर से निकल चुकी हूं तैयार होकर तो क्यों ना फिर ऑफिस ही आ जाऊं, और घर में लॉक है इसके लिए मैं ऑफिस आ गई। थोड़ी देर में विद्या जानबूझ कर बाहर गई और विनायक के पास वाले दीवार पर रुक गई। विनायक फोन पर बात कर रहा था कि गौरी शंकर का लेटर तैयार है और आपके टेबल पर रखा है। विनायक बाहर निकाला और विद्या ने तुरंत पीयूष के टेबल पर गई और गौरी शंकर का लेटर देखा। उसपर एक महीने के अंदर उसे  ज्वाइन करने के लिए और प्रवेश के पद का नाम लिखा था। गौरीशंकर का मोबाइल नंबर विद्या ने नोट कर लिया।


बात बिलकुल साफ हो गई, अब केवल यह पता करना है की गौरी शंकर किसका आदमी है, पीयूष का या विजय का। वह भी साफ हो गया जब उसने पीयूष  एक बार गौरी शंकर से एक दोस्त की तरह बात करते सुना। विद्या का यह अनुभव उसे ऑफिस की एक दूसरी शक्ल दिखा रहा था।


दो दिन के बाद विद्या के पास प्रवेश का फोन आया की आज उसे एक लेटर मिला है, पीयूष के पास से और उसमें यह लिखा है की 1 महीने का उसे नोटिस दिया जा रहा है और इसके अंदर वह कोई दूसरी नौकरी खोज ले। विद्या ने उसकी बात सुनी और कहा कि मैं तुमसे बाद में बात करूंगी और फोन रख दिया। विद्या को प्रवेश की हालात से बहुत ही दुख हो रहा था और उसे अपने आप से भी घृणा होने लगी थी की वह कुछ भी नहीं कर पा रही थी प्रवेश के लिए। आज उसने ऑफिस की ताकत महसूस की। जेल की दीवार, लोहे के दरवाजे, और बंद खिड़कियां आपको बताती है कि आप जेल में बंद हैं, लेकिन आज जो एक जेल प्रवेश के चारों तरफ बना हुआ है वह  एक वर्चुअल ( काल्पनिक) जेल है जो दिखता नहीं है, मगर वह उसमें कैद है।


समय बीतता गया और दयाशंकर प्रवेश की जगह आ गया और प्रवेश कंपनी से बाहर निकल गया। सूखे पत्ते पेड़ से गिरते ही हैं और इसका दुख नहीं होता, लेकिन जब जवान, हरे पत्ते तोड़कर अपनी जगह से हटाए जाते हैं तो बहुत दुःख होता है। विद्या को आज ऐसा ही लग रहा है।


समय ने करवट ली और लगभग प्रवेश को गए तीन चार महीने ही हुए होंगे कि १० दिनों के अंतर में ही पीयूष और विजय की मृत्यु हो गई। 


आज भी उनकी मौत एक रहस्य बनी हुई है, कोई कहता है इसमें प्रवेश का हाथ है, कोई कहता है, शशि का, कोई कहता है गौरीशंकर का और कोई कहता है ईश्वर ने ही उनको दंडित किया।


जिंदगी जो दिखती है, वह उसका बहुत ही स्थूल रूप है; कई परतें उसके ऊपर होती हैं, जैसे शहद में रंग और स्वाद छुपा होता है। हमें ईश्वर ने सीमित शक्ति दी है ताकि वह अपने बनाए हुए इस प्रकृति को चला सके। हम सब सदैव रहस्यों से घिरे रहते हैं और यही हमें एहसास कराता है अपनी शक्ति का। 




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